RBI Repo Rate भारतीय रिजर्व बैंक ने ब्याज दरों में कटौती का सिलसिला शुरू कर दिया है। फरवरी के बाद अब अप्रैल में भी केंद्रीय बैंक ने रेपो रेट में कमी की है। इस बार रेपो रेट 6.50% से घटकर 6.00% हो गया है। लगातार दूसरी बार कटौती से संकेत मिल रहे हैं कि आने वाले समय में लोन लेना और सस्ता हो सकता है, जिससे EMI में भी राहत मिलेगी। यह कदम लोन लेने वालों के लिए राहतभरी खबर है।
और घट सकता है रेपो रेट – HSBC की रिपोर्ट
एचएसबीसी ग्लोबल रिसर्च की एक नई रिपोर्ट के मुताबिक, आने वाले महीनों में RBI रेपो रेट में और भी कटौती कर सकता है। रिपोर्ट के अनुसार, जून और अगस्त में होने वाली मौद्रिक नीति बैठकों में रेपो रेट में 25-25 बेसिस प्वाइंट्स की और कमी संभव है। अगर ऐसा होता है, तो इस वित्त वर्ष में रेपो रेट घटकर 5.5% तक आ सकता है। इसके साथ ही, लिक्विडिटी की स्थिति भी सहज बनी रहने की उम्मीद है, जिससे ब्याज दरों में कटौती का लाभ उपभोक्ताओं तक आसानी से पहुंचेगा।
FY26 में महंगाई दर रह सकती है 3.7% के आसपास
मार्च 2025 में खुदरा मुद्रास्फीति (CPI) 3.3% दर्ज की गई, जो बाजार की उम्मीद 3.5% से कम रही। लगातार तीसरे महीने खाद्य पदार्थों की कीमतों में गिरावट दर्ज की गई है, खासतौर पर सब्जियां, दालें, अंडे और मांस-मछली जैसे उत्पादों में। वहीं, अनाज और दूध की कीमतें स्थिर रहीं, जबकि फल और चीनी की कीमतें थोड़ी बढ़ीं।
HSBC का कहना है कि अप्रैल में भी महंगाई का स्तर मार्च के आसपास ही रहेगा। रिपोर्ट में बताया गया है कि प्याज और टमाटर की कीमतों में गिरावट के चलते अप्रैल के पहले 10 दिनों में सब्जियों के दाम 0% से 5% तक कम हुए हैं। HSBC का अनुमान है कि वित्त वर्ष 2026 में औसतन CPI महंगाई दर 3.7% रह सकती है, जो RBI के 4% के लक्ष्य से नीचे है।
खाद्य मुद्रास्फीति में अप्रैल से राहत के संकेत
नई गेहूं की फसल आने और भारतीय मौसम विभाग (IMD) द्वारा ‘सामान्य’ मानसून की भविष्यवाणी के चलते अप्रैल से खाद्य मुद्रास्फीति में और गिरावट की उम्मीद है। इसके अलावा, हाल ही में रुपए में मजबूती, चीन से आने वाले उत्पादों की कीमतों में स्थिरता, कच्चे तेल की नरम कीमतें और घरेलू मांग में सुस्ती जैसे कारणों से कोर महंगाई भी सीमित रह सकती है।
थोक महंगाई दर (WPI) की बात करें तो मार्च में कीमतें सामान्य रहीं, लेकिन कोर कैटेगरी में CPI के मुकाबले थोक महंगाई में ज्यादा गिरावट देखी गई।
औद्योगिक उत्पादन की रफ्तार भी रही धीमी
फरवरी में औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (IIP) में सालाना आधार पर 2.9% की बढ़ोतरी दर्ज की गई, जबकि बाजार ने 3.6% की उम्मीद की थी। HSBC की रिपोर्ट के अनुसार, उनके 100 सूचकांकों के एनालिसिस से पता चलता है कि मार्च तिमाही में सुधार जरूर हुआ है, लेकिन यह अब भी जून 2024 की तुलना में कमजोर है।
कुल मिलाकर, ब्याज दरों में और गिरावट, कम होती महंगाई और थमी हुई औद्योगिक गति मिलकर एक ऐसा वातावरण बना रहे हैं, जहां उपभोक्ताओं को राहत तो मिल सकती है, लेकिन अर्थव्यवस्था को मजबूती देने के लिए अभी और प्रयासों की जरूरत है।